बिहार को गरीबी से निकालने के लिए कोई आशा का किरण नहीं दिखाई दे रहा चुकी पुराने उद्योग धंधे बंद पड़े है और नए के लिए कोई रोड मैप ही नहीं दिखाई दे रहा ऐसे में बिहार की जनता निराशा के घोर अँधेरा में डूबता अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा है। जब बिहार सरकार या वहाँ का नेता विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाए तभी बिहार के जनमानस में उम्मीद का किरण जग पायेगा और विकास का माहौल बन पायेगा।
जहाँ तक वर्तमान के बिहार के औद्योगीकरण का प्रश्न है सरकारी क्षेत्र के जो बंद या मृतप्राय उपक्रम हैं, उन्हें निजी क्षेत्र को सौंप देने की प्रक्रिया अपनाना होगा। सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ खास उपक्रम जिनकी उपयुक्तता संदिग्ध है और उसमे प्राण फूँकने की सम्भावना नहीं है, उन्हें पूर्णतः बंद कर उस जगह पे नए उद्योग लगाने की निति बनाने का जरुरत था। सार्वजनिक क्षेत्र की बंद पड़ी चीनी मिलों के निजीकरण की प्रक्रिया युद्धस्तर पे होनी चाहिए था। जिससे बिहार के मजदुर और किसानों में उम्मीद का किरण जगाया जा सकता था।
और साथ ही केन्द्र सरकार के कुछ उपक्रम जैसे एशिया का प्रसिद्ध अमझोर का सुपर फॉस्फेट प्लांट, बंद होने के कगार पर है और उन्हें पुनर्जीवन करने के लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने की आवश्यकता था। विकास की शुरुआत होगी तभी विकास का माहौल बनेगा वरना दिन प्रतिदिन बिहार और गरीब और पिछड़ता चला जायेगा।
राज्य के सबसे बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान डालमिया नगर के रोहतास उद्योग समूह को फिर से खुलवाने में दृढ संकल्प और मजबूत इरादे के साथ केंद्र पे दवाब बनाकर उसे शीघ्र क्रियान्वयन में लाने की जरुरत है। और साथ ही नए स्टार्टअप, लघु उद्योग, ग्रामीण उद्योग बढ़ावा देने के साथ और निजी क्षेत्र के बाहरी बिजनेस मेन के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करने हेतु विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रचर, आधुनिक ट्रांसपोर्ट के साधन, समुचित विद्युत् आपूर्ति, सुरक्षा की गारंटी के लिए टेक्नोलॉजी बेस्ड उच्च स्तरीय प्रशासनिक सहयोग की तत्परता के साथ-साथ एक शांत, प्रेरक और तनावमुक्त माहौल बनाने की आवस्यकता है जो उन्हें बिहार में बिजनेस करने के लिए आकर्षित कर सके जिससे बिहार फिर से एक बार विकास के राह पे अपना कदम बढ़ा सके। जिससे बिहार के बेरोजगार युवाओं को रोजगार देकर बिहार से हो रहे अच्छे अच्छे टेलेंट के पलायन को रोका जा सकता था।
नए उद्योगों की स्थापना में कृषि-आधारित उपक्रमों को प्रधानता देकर बिहार के किसान में एक बार फिर से जान फूंका जा सकता था । औद्योगिक विकास बैंक जैसे संस्थाओं के लिये बिहार आकर्षण का केन्द्र नहीं रहा है, लेकिन जिन्हे आकर्षित करने के लिये समुचित माहौल का निर्माण करना राज्य सरकार का दायित्व होता है।
बरौनी और कांटी थर्मल प्रोजेक्ट के रख-रखाव में सुधार लाकर, कोशी जल विद्युत परियोजना का विस्तार कर, मिनी पावर प्लांटों (विशेषकर जल विद्युत के क्षेत्र में) की स्थापना कर एवं राष्ट्रीय थर्मल पावर कारपोरेशन तथा चूखा विद्युत आपूर्ति केन्द्र के साथ सहयोग बढ़ाकर बिजली के क्षेत्र में बिहार आत्मनिर्भर हो सकता था जिससे उद्योग धंधे लगाने के लिए पर्याप्त बिजली देने में हम सक्षम सकते थे।
इसलिए हम बार बार एक ही बात दोहरा रहे किसी भी राष्ट्र या प्रदेश की उन्नति के लिए सत्ता में मजबूत नेतृत्व का होना आवश्यक होता है लेकिन इसमें सबसे बड़ा जिम्मेदार जातिवाद की फोबिया से ग्रषित बिहार की जनता ने बिहार को ज्यादातर अल्पमत की दी है विश्वास नहीं होता तो बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यकाल उठाकर देख सकते है दो चार को छोड़कर ज्यादातर ईमानदार मुख्यमंत्री एक साल से ज्यादा का सरकार नहीं चला पाए और वो जातिवाद के हासिये शिकार हो गए जिस कारन बिहार आज देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य बन गया।
इसलिए इस बार किसी पार्टी का उम्मीदवार नहीं चुन बल्कि अपने अपने क्षेत्र का प्रतिभावान जनपप्रतिनिधि चुन विधान सभा और लोकसभा में भेजने के संकल्प के साथ बिहार को एक मजबूत नेतृत्व देने के लिए इस मुहीम का हिस्सा बन बिहार को पुनः वैभवशाली बनाने में अपना भागीदारी निभाएं।
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