जातिवाद के नाम पे बिहार ने क्या खोया और क्या पाया?? प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह बाबू का बिहार के लिए योगदान ??

//जातिवाद के नाम पे बिहार ने क्या खोया और क्या पाया?? प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह बाबू का बिहार के लिए योगदान ??

जातिवाद के नाम पे बिहार ने क्या खोया और क्या पाया?? प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह बाबू का बिहार के लिए योगदान ??

देश के सबसे पिछड़े राज्य में सुमार करने वाली जातिगत राजनीती के विषपान करने वाला बिहार के लोग अब इस देश के लिए बीमारी बनता जा रहा है। लेकिन ये भूलना गलत होगा की बिहार का वर्तमान जितना स्याह है उतना ही उज्वल हुआ करता था उसका अतीत।

आजादी के बाद के कुछ दशकों तक भी हमारा बिहार सुखी और संपन्न था और पंजाब जैसे राज्य से हमारी आर्थिक स्थिति मजबूत हुआ करती थी ।  ‘बिहार केशरी’ के नाम से लोकप्रिय हमारे प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने प्राचीन गौरवशाली भूमि बिहार को आधुनिक कलेवर देने का भरपूर प्रयास किया । आजाद भारत का पहला तेलशोधक कारखाना उन्हीं के शासनकाल में बरौनी में खुला, देश का पहला रासायनिक खाद का कारखाना सिंदरी एवं बरौनी में खोला गया । उन्हीं के निर्देशन में एशिया का पहला भारी उद्योग संयंत्र हटिया में  तथा सबसे बड़ा स्टील संयंत्र  बोकारो में शुरू हुआ था।

तबतक बिहार को जातिवाद का ग्रहण नहीं लगा था और सत्ता में बैठे श्री बाबू के ही मजबूत नेतृत्व का प्रतिक है उस ज़माने में भारत का आधुनिकतम तकनीक पर आधारित एशिया में सबसे बड़ा पटना का राजेंद्र सेतु  और गढ़हरा का का सबसे बड़ा रेलयार्ड भी उन्हीं के लोक कल्याण भावना और कर्तव्य परायणता की निशानियां हैं । शिक्षा के क्षेत्र में बिहार विश्वविद्यालय, भागलपुर और राँची विश्विद्यालय श्री बाबू के शासन काल में ही अस्तित्व में आया ।

लेकिन दो – तीन दशकों से जातिवाद  के प्रयोगशाला में बिहार का गौरवशाली अतीत और वर्तमान दोनों दोनों गुमनाम हो गया और आज देश के सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य के पायदान पे खड़ा दुनियाँ से अपनी अस्मिता बचाने की गुहार लगा रही। बिहार के साथ केंद्र ने भी शुरू से दोहरा चरित्र दिखाया।

1990 आते आते बिहार गुंडागर्दी, हफ्तावसूली, रंगदारी , अपहरण , नरसंहार जैसे तांडव का केंद्र बनना प्रारम्भ हो चूका था जिस बदनामी के कारण बिहार 1990 लाये गए केंद्र के वैश्वीकरण के नीति के लाभ से अछूता रह गया। जिसे बाद में श्री नितीश कुमार जी काफी हद तक सुधारने का प्रयास किया लेकिन गठबंधन और महागठबंधन की राजनीती ने उन्हें भी सोशल इंजीनियरिंग करने के लिए मजबूर कर दिया। और इस मामले में बिहार के साथ केंद्र ने भी शुरू से दोहरा चरित्र दिखाया।

और आज जब पूरा विश्व के साथ साथ हमारा देश भी 21 वी सदी के टेक्नोलॉजी और डिजिटल युग में अपना वर्चस्व की लड़ाई में बराबरी कर रहा हो इस विशिस्ट क्षण में बिहार का जातिवाद और परिवारवाद के डंक के कारण पिक्षडा रहना हर बिहारी के लिए किसी कलंक से कम नहीं और बिहार से बाहर रहने वाले इस कलंक को भलीभांति समझते और भुगत भी रहे है।

अभी तो दुनियाँ मुझपर थूक रही है अगर हम अभी भी नहीं जागेंगे तो आनेवाला पीढ़ी भी हमारे मुंह पे थूकेगा। समस्या हमारी है समाधान भी हमें ही ढूढना होगा वो भी अतिशीघ्र। अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से राजनीती हमसभी के जीवन को प्रभावित करता है जैसे बेरोजगारी हो  या महगाई का मुद्दा या शिक्षा का मुद्दा जिसे हम झेल ही रहे है परन्तु अब अगर देरी हुई तो हमारी गौरवशाली इतिहास की स्मिता बचाना मुश्किल हो जायेगा और हमारे बच्चे बिहार से बाहर सर उठाने के काबिल नहीं रहेंगे इसलिए सभी महनुभवों से मेरा आग्रह है की इस डिजिटल मुहीम से जुड़ अपना भी सुझाव देने की कृपा करें।

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By |2023-01-18T17:04:49+05:30January 11th, 2023|मुहिम|0 Comments

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