देखा जाय तो हमारे देश में नेता की पहचान जो पैसे के बल पे भीड़ एकठा कर सकता हो, दंगा फैला सकता हो, ट्रैन, बस रुकवा सकता हो या फिर अच्छे कपडे पहनकर टीवी पे बोल सकते हो और अगर आपके ऊपर एक दो मर्डर, बल्तकार का केस चल रहा हो तो फिर आपको नेता बनने में शायद कोई परेशानी नहीं हो सकती।
लेकिन बिहार के नेता थोड़ा दूजे किशम के होते उसमे पहले बताये गुन का होना तो अनिवार्य है ही लेकिन साथ साथ आपको किसी न किसी जाति या धर्म का ठेकेदार होना या उस क्षेत्र में जिस जाति की जनसंख्याँ ज्यादा हो और उस जाति से आप बिलोंग करते हो तो फिर पैसे के बल पे आप टिकट खरीद सकते वो अमाउंट एक करोड़ से कितने करोड़ तक का हो सकता है ये उस क्षेत्र के कम्पेटिसन पे डिपेंड करता है।
अब अगर चुनाव जीतना है तो चुनावी मेढक और हर मोहल्ले और जाति के मुपरुख वक्ता लोगों के बिकाऊ जमीर को खरीदने के लिए कुछ खैरात बाँटना ही होगा.,, अब रह गया समाज में माहौल बनाने के लिए उस उम्मीदवार का झंडा लेकर सड़क और गलियों में कुत्ते के तरह भोंकने के लिए कुछ निर्लज, दिलफेंक युवा की जरुरत तो पड़ेगी,… जिसका चुनाव ख़त्म होने तक रोटी, बाइक का पेट्रोल और दारू पानी का खर्चा उठा लिए तो ये पालतू कुत्ता उम्मीदवार को जिताने के लिए बड़े काम का साबित होता है इसलिए सबसे ज्यादा खर्चा इसी पे आता है।
फिर चुनाव ख़त्म होते ही ये दिलफेंक आशिक युवा बेरोजगारी और महगाई के नाम पे छाती पीटने लगता है, लोकतंत्र का महापर्व मतदान के समय हम एक बोतल शराब या किलोभर अनाज और चंद पैसों के खातिर अपना वोट और अपनी आत्मा बेचने के साथ साथ अपनी मातृभूमि और अपने बच्चे के भविष्य को भी गिरवी रख देते है।
और जब उसने कड़ौड़ों रूपये खर्च करके हमारा वोट ख़रीदा और टिकट ख़रीदा फिर तो वो दानवीर कर्ण होगा या तो वेबकूफ होगा तभी वो लोककल्याण का सोचेगा या वरना जरा सभी दिमाग वाला होगा तो वो सूद सहित पहले अपना पैसा निकालने का रास्ता ढूढ़ेगा। और जो पैसे वो निकालेगा उसका असर किसके ऊपर होगा बस इतना सा फार्मूला अगर लोग समझ ले तो वो चंद खैरात के चक्कर में अपना वोट नहीं बेचेगा।
इस सत्य को बिहार के लोग जबतक स्वीकारेगा नहीं तबतक बदलाव संभव नहीं हो सकता। इस जागरूकता को समाज के हर वर्ग तक फैलाना होगा और एक स्वक्ष राजनीती के नींव के लिए हमें जातिवाद रूपी जहर के मूर्क्षा से बहार आना होगा।
एक स्वक्ष राजनीती के नींव के लिए हमें जातिवाद रूपी जहर के मूर्क्षा से बहार आकर हमें ऐसे प्रतिभावान युवा को अपना जनप्रतिनिधि चुनना होगा जिसे गरीब, किसान, बेरोजगार के दर्द को अपने जीवन में अनुभव किया हो और जिसने बिहार से बाहर रहकर दुनियाँ के विकास को देखा हो और बिहारी मजदुर के दर्द का अनुभूति किया हो वही हमारा विकास का भागीदार बन सकता है।
समाज में जागरूकता फ़ैलाने की कृपा करें और एक शसक्त बिहार बनाने में अपना भूमिका निभायें।
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