शुरआत अगर बिहार के अररिया जिला के दुर्दशा से करें आपसभी को अंदाजा लग जायेगा की हमसभी को अपने अपने क्षेत्र में प्रतिभाशाली जनप्रितिनिधि के चुनाव की जरुरत क्यों है। बिहार के ईमानदार और यसस्वी और देश के पहले दलित मुख्यमंत्री स्वर्गीय भोला पासवान का जन्मक्षेत्र और कर्मक्षेत्र रहा अररिया जिला जो की बिहार के जिलों के लिस्ट में सबसे ऊपर और पिछड़ेपन सबसे निचले पायदान पे है। जहाँ 64.65 प्रतिशत लोग अर्थात लगभग दस में 7 लोग गरीबी रेखा से निचे आता है। विश्वास न हो तो गूगल पे सर्च कर देख सकते है।
लेकिन विडम्बना देखिये कई दशकों से इस जिला के किसी भी नेता को आपने संसद भवन और विधान सभा में अपने क्षेत्र के समस्या के बारे में अपनी बात रखते हुए टीवी या समाचार पत्रों में देखा हो तो कृपा कर कमेंट जरूर करें।
इस विडिओ को देखने से आपसभी को अंदाजा लग जायेगा की हमसभी को अपने अपने क्षेत्र में प्रतिभाशाली जनप्रितिनिधि के चुनाव की जरुरत क्यों है।
सीमांचल क्षेत्र के ज्यादातर नेता सदन में कोई कोना में बैठ अपना हाजरी लगाने के शिवाय भूल से भी मीडया के कैमरा की तो बात दूर CCTV कैमरा भी आने में इसे डर लगता है चुकी इसे न अपने क्षेत्र का भूगोल मालूम है और न इतिहास और वर्तमान के उलझन में ये लोग पड़ना नहीं चाहता चुकी कड़ोरों रूपया देकर बेचारे को टिकट मिलता और फिर क्षेत्र में करोड़ों रुपये चुनाव में बांटने होते है उसके बाद भी वेबकूफ जनता के हाथ जोड़ने पड़ते है इतने पैसे खर्च करके लोग तो स्विट्जरलैंड के किसी रिसोर्ट में सालों साल मजे से बिता दे।
इस बेचारे का कोई गलती नहीं ये हमारे आपके जैसे मजबूर लोग है जिन्होंने MP, MLA बनने के लिए पैसा लगाया है तो चुपचाप सूद सहित निकालने होंगे ये लोग तो आम जनता से ज्यादा समस्या में रहते है इन्हे हमारी समस्या सुलझाने की कहाँ समय ।
लगभग 35 -40 वर्षों से जातिवाद की राजनीती से किसे क्या फायदा मिला बदले में मिला हमें एक पिछड़ा और गरीब बिहार जिस कारण बिहारी शब्द आज देश और दुनियाँ के लिए गाली का प्रतिक बन चूका जिसका हृदयविदारक अनुभूति बिहार से बाहर रह रहे लोगों को भली भांति अनुभव है।
जैसा की हम सभी जानते है अगर बच्चा रोये नहीं तो माँ भी दूध नहीं पिलाएगी लेकिन हमारे बिहार के ज्यादातर MP, MLA सदन हो सड़क या मिडिया के सामने अपने क्षेत्र की समस्या के बारे में बात ही नहीं करेंगे तो उस क्षेत्र का विकास कैसे संभव हो पायेगा ??
एक बोतल शराब या किलोभर अनाज और चंद पैसों के खातिर अपने वोट बेचना अपनी आत्मा बेचने या अपनी माँ के सौदा करने के के बराबर होता है और इस सत्य को बिहार के लोग जबतक स्वीकारेगा नहीं तबतक बदलाव संभव नहीं हो सकता। इस जागरूकता को समाज के हर वर्ग तक फैलाना होगा और एक स्वक्ष राजनीती के नींव के लिए हमें जातिवाद रूपी जहर के मूर्क्षा से बहार आना होगा।
हमें ऐसे प्रतिभावान युवा को अपना जनप्रतिनिधि चुनना होगा जिसे गरीब, किसान, बेरोजगार के दर्द को अपने जीवन में अनुभव किया हो और जिसने बिहार से बाहर रहकर दुनियाँ के विकास को देखा हो और बिहारी मजदुर के दर्द का अनुभूति किया हो वही हमारा विकास का भागीदार बन सकता है।
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