आज जोकुछ भी हम अपने आस पड़ोस देख रहे है या खुद इस्तेमाल कर रहे है चाहे वो मोबाइल, टीवी, बाइक गाड़ी ये सभी शिक्षा का ही तो देन है, लेकिन शिक्षा को सिर्फ अगर सरकारी नौकरी पाने का साधन मान लिया जाय तो फिर शिक्षा का महत्व ही ख़त्म हो जाता है।
चुकी जैसा की हम सभी जानते है आवस्यकता ही अविष्कार की जननी होता है इस पृथ्वी पे जिसने जनमानस की समस्या को समझ अपने आप को सृष्टि का एक माध्यम मान दुनियाँ से लेने की नहीं बल्कि दुनियाँ को कुछ देकर जाने के लिए संकल्प कर उस उचित समाधान के लिए अपना जीवन समर्पित किया वही व्यक्ति महान बना और इस उपलब्धि के लिए दुनियाँ उसका सदैव कृतज्ञ रहेगा।
आपने कई शिक्षण संस्थान पर लिखा हुआ पढ़े होंगे शिक्षार्थ आईये और सेवार्थ जाईये अर्थात “कम टू लर्न, गो टू सर्व” मतलब शिक्षा ग्रहण कर अपने अंदर सेवा भाव लेकर देश और समाज में बहुजन हिताय सर्वजन सुखाय के काम में इसका सदुपयोग करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है ।
शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाने तक सीमित कर लेना ही शिक्षा के महत्व का पतन का कारन बना और जोकि मनुष्य के पतन का भी कारन बना। हम मानते है पापी पेट का सवाल है, जीवन जीने के लिए जीविका उपार्जन अति आवशयक है लेकिन हम जीविका उपार्जन के लिए कोई भी काम क्यों न करें शिक्षा हमें उस काम में विशिष्ट बनाता है और हमें स्वालम्बन के साथ साथ जीवन जीने की आजादी देता है।
धन और सम्पति जीवन जीने के साधन जरूर है परन्तु साध्य नहीं चुकी ज्यादातर देखा गया है की एक पीढ़ी कष्ट करके कमाता है दूसरा पीढ़ी उचित शिक्षा के आभाव में उसे अय्यासी में लुटा देता है जबकि उचित शिक्षा व्यक्तित्व निर्माण कर नेतृत्व क्षमता प्रदान करता है जोकि व्यक्ति के अंदर लोक कल्याणकारी भावना को पैदा कर और एक मानव को महा मानव बना विश्व में परिवर्तन लाने में सक्षम होता है।
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